फुर्सत मिली तो बिताऊँगा जिंदगी एक कवि की तरह लुंगी पहन कर जाऊँगा दफ्तर मिटा दूँगा कायदे खोजूँगा जिंदगी के वे हिस्से जहाँ सर और पैर हो सकते हैं दिन में अदब से सिर झुकाऊँगा खुशी से सिर उठाऊँगा शाम को सोचूँगा कुछ।
हिंदी समय में संजय चतुर्वेदी की रचनाएँ